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Parivartansheel Vishwa Mein Bharat Ki Ranneeti – Hindi
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
S Jaishankar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
S Jaishankar
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹600 ₹420
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In stock
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1-4 Days
In stock
Weight | 250 g |
---|---|
Book Type |
ISBN:
SKU
9789390366507
Category Hindi
Category: Hindi
Page Extent:
228
वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से लेकर वर्ष 2020 के कोरोना महामारी तक का दशक वैश्विक व्यवस्था में एक वास्तविक परिवर्तन का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बुनियादी प्रकृति और नियम हमारी नजरों के सामने बदल रहे हैं।
भारत के लिए इसके मायने अपने लक्ष्यों को सर्वश्रेष्ठ तरीके से आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को सर्वोत्कृष्ट करने से है। हमें अपने नजदीकी व विस्तारित पड़ोस में भी एक दृढ़ और गैर-पारस्परिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। एक वैश्विक पहचान, जो भारत की वृहद् क्षमता और प्रासंगिकता के साथ इसके विशिष्ट प्रवासी समुदाय का लाभ उठाए, अभी बनने की प्रक्रिया में है। वैश्विक उथल-पुथल का यह युग भारत को एक नेतृत्वकारी शक्ति बनने की राह पर ले जाते हुए इससे और अधिक अपेक्षाओं की जरूरत पर बल देता है।‘परिवर्तनशील विश्व में भारत की रणनीति’ में भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने इन्हीं चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए संभावित नीतिगत प्रतिक्रियाओं की व्याख्या की है। ऐसा करते समय वे भारत के राष्ट्रीय हित के साथ अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का संतुलन साधने में अत्यंत सतर्क रहे हैं। इस चिंतन को वे इतिहास और परंपरा के संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं, जो कि एक ऐसी सभ्यतागत शक्ति के लिए, जो वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को पुनः हासिल करने की तलाश में है, सर्वथा उपयुक्त है।
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Description
वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से लेकर वर्ष 2020 के कोरोना महामारी तक का दशक वैश्विक व्यवस्था में एक वास्तविक परिवर्तन का प्रत्यक्षदर्शी रहा है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की बुनियादी प्रकृति और नियम हमारी नजरों के सामने बदल रहे हैं।
भारत के लिए इसके मायने अपने लक्ष्यों को सर्वश्रेष्ठ तरीके से आगे बढ़ाने के लिए सभी प्रमुख शक्तियों के साथ संबंधों को सर्वोत्कृष्ट करने से है। हमें अपने नजदीकी व विस्तारित पड़ोस में भी एक दृढ़ और गैर-पारस्परिक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। एक वैश्विक पहचान, जो भारत की वृहद् क्षमता और प्रासंगिकता के साथ इसके विशिष्ट प्रवासी समुदाय का लाभ उठाए, अभी बनने की प्रक्रिया में है। वैश्विक उथल-पुथल का यह युग भारत को एक नेतृत्वकारी शक्ति बनने की राह पर ले जाते हुए इससे और अधिक अपेक्षाओं की जरूरत पर बल देता है।‘परिवर्तनशील विश्व में भारत की रणनीति’ में भारत के विदेश मंत्री डॉ. सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने इन्हीं चुनौतियों का विश्लेषण करते हुए संभावित नीतिगत प्रतिक्रियाओं की व्याख्या की है। ऐसा करते समय वे भारत के राष्ट्रीय हित के साथ अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का संतुलन साधने में अत्यंत सतर्क रहे हैं। इस चिंतन को वे इतिहास और परंपरा के संदर्भ में प्रस्तुत करते हैं, जो कि एक ऐसी सभ्यतागत शक्ति के लिए, जो वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को पुनः हासिल करने की तलाश में है, सर्वथा उपयुक्त है।
About Author
डॉ. एस. जयशंकर मई 2019 से भारत के विदेश मंत्री हैं। वे गुजरात राज्य से राज्य सभा (उच्च सदन) के संसद् सदस्य हैं।
एक पेशेवर राजनयिक के रूप में चार दशक से अधिक समय का उनका कॅरियर सन् 2015 से 2018 तक विदेश सचिव के रूप में तीन साल के कार्यकाल के साथ समाप्त हुआ। इस अवधि के दौरान, वह परमाणु ऊर्जा आयोग और अंतरिक्ष आयोग के सदस्य भी थे। इससे पूर्व उन्होंने ओबामा प्रशासन के दौरान सन् 2013 से 2015 के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया। वह वहाँ चीन से गए थे, जहाँ उन्होंने वर्ष 2009 से 2013 के बीच सबसे लंबे समय तक भारतीय राजदूत के रूप में काम किया। इसके अलावा, सन् 2007 से 2009 तक सिंगापुर और 2000 से 2004 तक चेक गणराज्य में भारत के राजदूत के रूप में भी नियुक्त रहे।इससे पूर्व के उनके राजनयिक कार्यों में मॉस्को, वाशिंगटन डी.सी. और कोलंबो में राजनीतिक अफसर के रूप में, बुडापेस्ट में वाणिज्यिक परामर्शदाता के रूप में और टोक्यो में मिशन के उप-प्रमुख शामिल हैं। विदेश मंत्रालय में वह सन् 2004 से 2007 तक अमेरिका खंड के प्रमुख और 1993 से 1994 तक पूर्वी यूरोप खंड के निदेशक रहे। उन्होंने वर्ष 1994 से 1996 तक भारत के राष्ट्रपति के प्रेस सचिव के रूप में भी कार्य किया।अपने राजनयिक कॅरियर के बाद वह सन् 2018-19 के दौरान टाटासंस प्राइवेट लिमिटेड में अध्यक्ष (वैश्विक कॉरपोरेट मामले) रहे। डॉ. एस. जयशंकर दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से स्नातक हैं। उन्होंने राजनीति विज्ञान में एम.ए. और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली से परमाणु कूटनीति पर अंतरराष्ट्रीय संबंध में एम.फिल. एवं पी-एच.डी. की है।उन्हें सन् 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
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