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Kason Kahon Main Dardiya
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Rita Shukla
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Rita Shukla
Language:
Hindi
Format:
Hardback
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
164
संगोष्ठी में भाग लेने के लिए आई विद्वन्मंडली उनके परंपराभंजक रूप को देखकर चमत्कृत थी । ताजा हवा के झोंकों- से स्कूर्त वे विचार उनकी अंतरात्मा की प्रतिध्वनि बनकर फूटे थे ।-दहेज समाज की रगों में प्रवाहित होनेवाला सबसे बड़ा प्रदूषण है विवाह के पारंपरिक स्वरूप में विकृतियाँ उत्पन्न करनेवाले. ऐसे अभिशप्त संदर्भों से मुक्ति पानी ही होगी दहेज देनेवाला भी समान पातक का भागी होता है वापसी की यात्रा तय करते समय उनके विचार विरु बनकर उनका मुझेहाँह चिढ़ाने लगे थे । कीचड़ में जन्म लेकर उससे निर्लिप्तता कि स्थिति पंकज की हो सकती है-जिंदगी पुरइन का पात नहीं जिसकी चिकनाहट जल की एक बूँद की भी अवधारणा नहीं कर सके । सामाजिकता में सराबोर जलकुंभी-सा परंपरा-ग्रथित मन अपनी निस्पृहता सिद्ध करना चाहे भी तो उसे लोकधर्म की परिभाषाओं से मुक्ति पानी होगी- संसार में रहकर संसार से ऊपर उठने की महती आकांक्षा यतिभाव को जन्म देती है-संन्यास लोकाचार से पलायन का दूसरा नाम हो सकता है; लेकिन लोकाचार पूर्वजों के द्वारा पोषित होती चली आ रही परंपराओं का एक ऐसा विवश स्वीकार है, जिसके बगैर जीवन की गति नहीं । विस्मय तो उन्हें तब हुआ था जब उनकी दूसरी पुत्री ने स्वयं उनके सामने प्रस्ताव रखा था-बाबूजी, इनके कार्यालय में सबके पास स्कूटर, मोटर साइकल हैं -सिर्फ ये ही हमारी सासजी कहती हैं -इतने बड़े प्राध्यापक हैं, क्या अपने दामाद को एक स्कूटर भी नहीं दे सकते हमने तो मोटरगाड़ी की आस लगाई थी । – इसी संकलन से बहुचर्चित कथाकार ऋता शुक्ल की कहानियों में समाज का संत्रास आँखोंदेखी घटना के रूप में उभरता है । तभी तो उनकी कहानियाँ संस्मरण, रेखाचित्र और कहानी का मिला-जुला अनूठा आनंद प्रदान करती हैं । उनकी हृदयस्पर्शी कहानियों का संकलन है- कासों कहों मैं दरदिया |
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Description
संगोष्ठी में भाग लेने के लिए आई विद्वन्मंडली उनके परंपराभंजक रूप को देखकर चमत्कृत थी । ताजा हवा के झोंकों- से स्कूर्त वे विचार उनकी अंतरात्मा की प्रतिध्वनि बनकर फूटे थे ।-दहेज समाज की रगों में प्रवाहित होनेवाला सबसे बड़ा प्रदूषण है विवाह के पारंपरिक स्वरूप में विकृतियाँ उत्पन्न करनेवाले. ऐसे अभिशप्त संदर्भों से मुक्ति पानी ही होगी दहेज देनेवाला भी समान पातक का भागी होता है वापसी की यात्रा तय करते समय उनके विचार विरु बनकर उनका मुझेहाँह चिढ़ाने लगे थे । कीचड़ में जन्म लेकर उससे निर्लिप्तता कि स्थिति पंकज की हो सकती है-जिंदगी पुरइन का पात नहीं जिसकी चिकनाहट जल की एक बूँद की भी अवधारणा नहीं कर सके । सामाजिकता में सराबोर जलकुंभी-सा परंपरा-ग्रथित मन अपनी निस्पृहता सिद्ध करना चाहे भी तो उसे लोकधर्म की परिभाषाओं से मुक्ति पानी होगी- संसार में रहकर संसार से ऊपर उठने की महती आकांक्षा यतिभाव को जन्म देती है-संन्यास लोकाचार से पलायन का दूसरा नाम हो सकता है; लेकिन लोकाचार पूर्वजों के द्वारा पोषित होती चली आ रही परंपराओं का एक ऐसा विवश स्वीकार है, जिसके बगैर जीवन की गति नहीं । विस्मय तो उन्हें तब हुआ था जब उनकी दूसरी पुत्री ने स्वयं उनके सामने प्रस्ताव रखा था-बाबूजी, इनके कार्यालय में सबके पास स्कूटर, मोटर साइकल हैं -सिर्फ ये ही हमारी सासजी कहती हैं -इतने बड़े प्राध्यापक हैं, क्या अपने दामाद को एक स्कूटर भी नहीं दे सकते हमने तो मोटरगाड़ी की आस लगाई थी । – इसी संकलन से बहुचर्चित कथाकार ऋता शुक्ल की कहानियों में समाज का संत्रास आँखोंदेखी घटना के रूप में उभरता है । तभी तो उनकी कहानियाँ संस्मरण, रेखाचित्र और कहानी का मिला-जुला अनूठा आनंद प्रदान करती हैं । उनकी हृदयस्पर्शी कहानियों का संकलन है- कासों कहों मैं दरदिया |
About Author
ऋता शुक्ल जन्म: 14 नवंबर, 1949 को डिहरी ऑन सोन में । शिक्षा: प्रारंभिक शिक्षा आरा स्थित पैतृक निवास पर, घर की चारदीवारी के भीतर । मगध विश्वविद्यालय की स्नातक हिंदी ' प्रतिष्ठा ' ( सत्र 1967) परीक्षा में विशिष्टता सहित प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान एवं स्वर्णपदक प्राप्त । मार्च 1982 से महिला महाविद्यालय, राँची के हिंदी विभाग में व्याख्याता पद पर कार्यरत, सितंबर 1984 में रीडर के पद पर प्रोन्नत तथा दिसंबर 1987 में विश्वविद्यालय प्राध्यापक पद पर प्रोन्नति प्राप्त । ' हिंदी कहानी के विकास में महिला कथाकारों का योगदान ' विषय पर मौलिक तथा प्रामाणिक शोध-प्रबंध प्रस्तुत । अनेक शोधार्थी छात्र-छात्राएँ इनके निर्देशन में हिंदी साहित्य के विविध विषयों पर शोध कर रही हैं । आपकी कविताएँ, कहानियाँ, उपन्यास एवं शोधपरक वैचारिक आलेख देश भर की लगभग सभी उच्च स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं । आपका पहला कथा- संकलन ' क्रौंचवध तथा अन्य कहानियाँ ' वर्ष 1984 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा देश भर से आमंत्रित कुल छियासी पांडुलिपियों में सर्वश्रेष्ठ घोषित, पुरस्कृत तथा प्रकाशित किया गया । आपकी अब तक प्रकाशित कृतियाँ हैं - ' देश ', ' अग्निपर्व ', ' समाधान ', ' बाँधो न नाव इस ठाँव ', ' शेषगाथा ', ' कनिष्ठा उँगली का पाप ', ' कितने जनम वैदेही ', ' कासों कहों मैं दरदिया ', ' मानुस तन ' तथा ' कायांतरण ' |
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