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Himalaya Par Lal Chhaya
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Shanta Kumar
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Shanta Kumar
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹600 ₹450
Save: 25%
In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
SKU
9789351868545
Categories Dharma/Religion, Hindi
Tag #P' Children's / Teenage fiction: Short stories
Categories: Dharma/Religion, Hindi
Page Extent:
344
वर्ष 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण स्वतंत्र भारत के इतिहास की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है और भारतीय सेना की शर्मनाक पराजय एक कलंक। वह हार सेना की नहीं थी, अपितु तत्कालीन सरकार की लापरवाही के कारण हुई थी। भारत की सरकार पंचशील के भ्रम में और ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे में मस्त रही; यद्यपि चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण के बाद भारतीय सीमा पर घुसपैठ चलती रही थी। जो भारत की सेना अपनी बहादुरी के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध थी और जिस सेना के पराक्रम से मित्र देशों ने दो विश्वयुद्धों में जीत हासिल की थी, भारत की वही बहादुर सेना 1962 में बुरी तरह से परास्त हुई। पिछले कुछ वर्षों से सीमा पर घुसपैठ कुछ अधिक होेने लगी है। कई बार चीनी सेना कई मील अंदर आ गई। चिंता का विषय यह है कि चीनी सेना भारतीय सीमा में अपनी मरजी से आती है और अपनी मरजी से ही वापस चली जाती है। इस पुस्तक का एकमात्र उद्देश्य भारत को उस चुनौती के लिए तैयार करना है, जो आज मातृभूमि पर आए संकटों ने हमारे सामने उपस्थित कर दी है। परिस्थितियाँ विपरीत हैं, मानो समय भारत के पौरुष, नीतिज्ञता व साहस की परीक्षा लेना चाहता है। निस्संदेह कुछ ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जिनसे भविष्य के प्रति महान् निराशा होती है, परंतु हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि विकट और महान् संकटों में से राष्ट्रों के उज्ज्वल भविष्य का उदय हुआ करता है|
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Chhaya” Cancel reply
Description
वर्ष 1962 में भारत पर चीनी आक्रमण स्वतंत्र भारत के इतिहास की एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है और भारतीय सेना की शर्मनाक पराजय एक कलंक। वह हार सेना की नहीं थी, अपितु तत्कालीन सरकार की लापरवाही के कारण हुई थी। भारत की सरकार पंचशील के भ्रम में और ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ के नारे में मस्त रही; यद्यपि चीन द्वारा तिब्बत के अधिग्रहण के बाद भारतीय सीमा पर घुसपैठ चलती रही थी। जो भारत की सेना अपनी बहादुरी के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध थी और जिस सेना के पराक्रम से मित्र देशों ने दो विश्वयुद्धों में जीत हासिल की थी, भारत की वही बहादुर सेना 1962 में बुरी तरह से परास्त हुई। पिछले कुछ वर्षों से सीमा पर घुसपैठ कुछ अधिक होेने लगी है। कई बार चीनी सेना कई मील अंदर आ गई। चिंता का विषय यह है कि चीनी सेना भारतीय सीमा में अपनी मरजी से आती है और अपनी मरजी से ही वापस चली जाती है। इस पुस्तक का एकमात्र उद्देश्य भारत को उस चुनौती के लिए तैयार करना है, जो आज मातृभूमि पर आए संकटों ने हमारे सामने उपस्थित कर दी है। परिस्थितियाँ विपरीत हैं, मानो समय भारत के पौरुष, नीतिज्ञता व साहस की परीक्षा लेना चाहता है। निस्संदेह कुछ ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जिनसे भविष्य के प्रति महान् निराशा होती है, परंतु हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि विकट और महान् संकटों में से राष्ट्रों के उज्ज्वल भविष्य का उदय हुआ करता है|
About Author
प्रबुद्ध लेखक, विचारवान राष्ट्रीय नेता व हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री शान्ता कुमार का जन्म हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा जिले के गाँव गढ़जमूला में 12 सितंबर, 1934 को हुआ था। उनका जीवन आरंभ से ही काफी संघर्षपूर्ण रहा। गाँव में परिवार की आर्थिक कठिनाइयाँ उच्च शिक्षा पाने में बाधक बनीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आकर मात्र 17 वर्ष की आयु में प्रचारक बन गए। तत्पश्चात् प्रभाकर व अध्यापक प्रशिक्षण प्राप्त किया। दिल्ली में अध्यापन-कार्य के साथ-साथ बी.ए., एल-एल.बी. की परीक्षा उत्तीर्ण कीं। तत्पश्चात् दो वर्ष तक पंजाब में संघ के प्रचारक रहे। फिर पालमपुर में वकालत की। 1964 में अमृतसर में जनमी संतोष कुमारी शैलजा से विवाह हुआ, जो महिला साहित्यकारें में प्रमुख हैं। 1953 में डॉ. श्यामप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में ‘जम्मू-कश्मीर बचाओ’ आंदोलन में कूद पड़े। इसमें उन्हें आठ मास हिसार जेल में रहना पड़ा। शान्ता कुमार ने राजनीतिक के क्षेत्र में शुरुआत अपने गाँव में पंच के रूप में की। उसके बाद पंचायत समिति के सदस्य, जिला परिषद् काँगड़ा के उपाध्यक्ष एवं अध्यक्ष, फिर विधायक, दो बार मुख्यमंत्री, फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री तक पहुँचे। शान्ता कुमार में देश-प्रदेश के अन्य राजनेताओं से हटकर कुछ विशेष बात है। आज भी प्रदेशवासी उन्हें ‘अंत्योदय पुरुष’ और ‘पानी वाले मुख्यमंत्री’ के रूप में जानते हैं। प्रकाशित पुस्तकें— मृगतृष्णा, मन के मीत, कैदी, लाजो, वृंदा (उपन्यास), ज्योतिर्मयी (कहानी संग्रह), मैं विवश बंदी (कविता-संग्रह), हिमाचल पर लाल छाया (भारत-चीन युद्ध), धरती है बलिदान की (क्रांतिकारी इतिहास), दीवार के उस पार (जेल-संस्मरण), राजनीति की शतरंज (राजनीति के अनुभव), बदलता युग-बदलते चिंतन (वैचारिक साहित्य), विश्वविजेता विवेकानंद (जीवनी), क्रांति अभी अधूरी है (निबंध), शान्ता कुमार: समग्र साहित्य (तीन खंड) तथा कर्तव्य (अनुवाद)। आशा है, इस पुस्तक को हर भारतीय द्वारा पढ़ा जाएगा, ताकि लोग चीनी आक्रमण से उत्पन्न उस विकट संकट को समझ सकें, जो अब भी बना हुआ है|
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