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Shrilal Shukla Ki
Lokpriya Kahaniyan
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Rajendra Rao Ki Lokpriya Kahaniyan
Publisher:
Prabhat Prakashan
| Author:
Rajendra Rao
| Language:
Hindi
| Format:
Hardback
Publisher:
Prabhat Prakashan
Author:
Rajendra Rao
Language:
Hindi
Format:
Hardback
₹350 ₹245
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In stock
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1-4 Days
In stock
Book Type |
---|
ISBN:
Categories: General Fiction, Hindi
Page Extent:
176
दैनिक जागरण समूह के ‘पुनर्नवा’ साहित्य परिशिष्ट के संपादक लब्धप्रतिष्ठ वरिष्ठ कथाकार श्री राजेंद्र राव देश के अग्रपंक्ति के महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं। जब हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का प्रकाशन सैकड़ों-हजारों में नहीं, लाखों प्रतियों में होता था, ऐसे सत्तर और अस्सी (बीती सदी) के दशक में अपनी कथाओं, धारावाहिकों, शृंखलाओं के माध्यम से साहित्य-जगत् में ख्याति की बुलंदियों का स्पर्श करनेवाले राजेंद्र राव ने हिंदी जनों के मनों में अपनी जो अमिट छाप अंकित की, वह अद्यतन कायम है। हमारे समय के कथात्मक परिदृश्य के बहुपठित, लोकप्रिय कथाकार राजेंद्रजी की स्थापनाएँ कथा विधा के जीवंत प्रतिमान रचती हैं। यही वजह है कि वे गद्य विधा के संस्थान तथा विशेषज्ञ के रूप में ख्यात हैं। वे ऐसे पहले रचनाकार हैं, जिन्होंने अभियांत्रिकी जैसे नीरस विषयों पर भी एक से बढ़कर एक कथाएँ लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी रचनात्मकता नए और अनछुए क्षेत्रों/ विषयों की रोचक रंजक सृजन-भूमि का उत्खन्न करती है। कथेतर गद्य की लगभग सभी विधाओं में बहुमुखी, बहुआयामी रचना-दृष्टि की सुस्पष्ट छाप दिखाई देती है। अमूर्त भावों के दृश्य चित्रण में सुदक्ष कथाशिल्पी राजेंद्रजी ने बदलते समय की पदचाप के परिणामस्वरूप शनैः-शनैः खंडित होते, बदलते, करवट लेते पारंपरिक समाज की पारिस्थितिकी को, व्यष्टि और समष्टि को अत्यंत बारीकी के साथ अपनी कथाओं में उत्कीर्ण किया है। —डॉ. दया दीक्षित एसोशिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, डी. ए. वी. कॉलेज, कानपुर (उ. प्र. ).
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Description
दैनिक जागरण समूह के ‘पुनर्नवा’ साहित्य परिशिष्ट के संपादक लब्धप्रतिष्ठ वरिष्ठ कथाकार श्री राजेंद्र राव देश के अग्रपंक्ति के महत्त्वपूर्ण रचनाकार हैं। जब हिंदी की प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का प्रकाशन सैकड़ों-हजारों में नहीं, लाखों प्रतियों में होता था, ऐसे सत्तर और अस्सी (बीती सदी) के दशक में अपनी कथाओं, धारावाहिकों, शृंखलाओं के माध्यम से साहित्य-जगत् में ख्याति की बुलंदियों का स्पर्श करनेवाले राजेंद्र राव ने हिंदी जनों के मनों में अपनी जो अमिट छाप अंकित की, वह अद्यतन कायम है। हमारे समय के कथात्मक परिदृश्य के बहुपठित, लोकप्रिय कथाकार राजेंद्रजी की स्थापनाएँ कथा विधा के जीवंत प्रतिमान रचती हैं। यही वजह है कि वे गद्य विधा के संस्थान तथा विशेषज्ञ के रूप में ख्यात हैं। वे ऐसे पहले रचनाकार हैं, जिन्होंने अभियांत्रिकी जैसे नीरस विषयों पर भी एक से बढ़कर एक कथाएँ लिखकर हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है। उनकी रचनात्मकता नए और अनछुए क्षेत्रों/ विषयों की रोचक रंजक सृजन-भूमि का उत्खन्न करती है। कथेतर गद्य की लगभग सभी विधाओं में बहुमुखी, बहुआयामी रचना-दृष्टि की सुस्पष्ट छाप दिखाई देती है। अमूर्त भावों के दृश्य चित्रण में सुदक्ष कथाशिल्पी राजेंद्रजी ने बदलते समय की पदचाप के परिणामस्वरूप शनैः-शनैः खंडित होते, बदलते, करवट लेते पारंपरिक समाज की पारिस्थितिकी को, व्यष्टि और समष्टि को अत्यंत बारीकी के साथ अपनी कथाओं में उत्कीर्ण किया है। —डॉ. दया दीक्षित एसोशिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, डी. ए. वी. कॉलेज, कानपुर (उ. प्र. ).
About Author
9 जुलाई, 1944 को कोटा (राजस्थान) में जनमे राजेंद्र राव शिक्षा और व्यवसाय से भले ही मेकैनिकल इंजीनियर रहे हों, मगर उनका मन सदैव साहित्य और पत्रकारिता में रमता रहा है। सातवें दशक में लघु उद्योगों से कॅरियर की शुरुआत करने के बाद कुछ अत्याधुनिक और विशिष्ट गैर-सरकारी और सरकारी संस्थानों में तकनीकी और प्रबंधन के प्रशिक्षण में कार्यरत रहते हुए उन्होंने कहानियाँ और रिपोर्ताज तो लिखे ही, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित कॉलम लेखन भी किया। फिर अकस्मात् साहित्यिक पत्रकारिता में आ गए। पहली कहानी ‘शिफ्ट’ ‘कहानी’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। उसके बाद साप्ताहिक हिंदुस्तान, धर्मयुग, सारिका, कहानी, रविवार आदि पत्रिकाओं में कहानियाँ, धारावाहिक उपन्यास, कथा-शृंखलाएँ, रिपोर्ताज और कॉलम लेखन का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जो अपनी खास मंथर गति से अब तक जारी है। अभी तक राजेंद्र राव के बारह कथा संकलन, दो उपन्यास और कथेतर लेखन का एक संकलन प्रकाशित हुआ है। संप्रति दैनिक जागरण में साहित्य संपादक। संपर्क: 374 ए-2, तिवारीपुर, जे.के. रेयान गेट नं. 2 के सामने, जाजमऊ, कानपुर-208010 (उ.प्र.)। मो.: 9935266693.
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