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Sushil Kumar Phull Ki Lokpriya Kahaniyan
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₹350 ₹263
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कहानी कोई चॉकलेट का टुकड़ा तो नहीं होती कि जिसे जब चाहा जैसा चाहा, साँचे-खाँचे में ढालकर बना लिया, बल्कि कहानी तो वह वैचारिक चिनगारी होती है, जो पाठक के मन में एक चौंध पैदा करती है, उसे एक संवेदनपरक चुभन देती है। परवर्ती सहज कहानी के प्रतिपादक सुशीलकुमार फुल्ल की कहानियों का फलक बहुत व्यापक है। वास्तव में संग्रह की कहानियाँ समाज में व्याप्त तनाव की अंतर्धारा की कहानियाँ हैं, जिनमें निम्नमध्य वर्ग का संघर्ष भी झलकता है और उनकी असहज महत्त्वाकांक्षाएँ भी उनके जीवन को बनाती-बिगाड़ती दिखाई देती हैं। समाज के वंचित, शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति कहानियों को समसामयिक समस्याओं से जोड़ देती है। स्थियों को व्यंग्यात्मक धरातल पर इस प्रकार रोचकता से उकेरा गया है कि पाठक कहानी के साथ बहता चला जाता है। कहानियाँ संश्लिष्ट शैली में लिपटी हुई, छोटे-छोटे सूक्त वाक्यों में गुँथी हुई भावप्रवणता से संपृक्त पात्रों के अंतर्मन में झाँकती हैं और जीवन के अवगुंठनों को सहजता से खोलती हैं। कहीं-कहीं कथा संयोजन में क्लिष्ट होते हुए भी ये कहानियाँ अपनी भाषागत सहजता एवं मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण पाठक को कथ्य से आत्मसात् होने में सहायक सिद्ध होती हैं। वर्तमान समय की सच्चाइयों, बढ़ते तनावों, राजनीतिक लड़ाइयों, व्यावसायिक द्वेषों, नारी-शोषण, वृद्ध प्रताड़ना आदि विषयों के अतिरिक्त अनेक छोटी-छोटी परंतु समाज को व्यथित कर देनेवाली घटनाओं पर आधारित कहानियाँ समय का दर्पण बनकर उभरी हैं|
कहानी कोई चॉकलेट का टुकड़ा तो नहीं होती कि जिसे जब चाहा जैसा चाहा, साँचे-खाँचे में ढालकर बना लिया, बल्कि कहानी तो वह वैचारिक चिनगारी होती है, जो पाठक के मन में एक चौंध पैदा करती है, उसे एक संवेदनपरक चुभन देती है। परवर्ती सहज कहानी के प्रतिपादक सुशीलकुमार फुल्ल की कहानियों का फलक बहुत व्यापक है। वास्तव में संग्रह की कहानियाँ समाज में व्याप्त तनाव की अंतर्धारा की कहानियाँ हैं, जिनमें निम्नमध्य वर्ग का संघर्ष भी झलकता है और उनकी असहज महत्त्वाकांक्षाएँ भी उनके जीवन को बनाती-बिगाड़ती दिखाई देती हैं। समाज के वंचित, शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति कहानियों को समसामयिक समस्याओं से जोड़ देती है। स्थियों को व्यंग्यात्मक धरातल पर इस प्रकार रोचकता से उकेरा गया है कि पाठक कहानी के साथ बहता चला जाता है। कहानियाँ संश्लिष्ट शैली में लिपटी हुई, छोटे-छोटे सूक्त वाक्यों में गुँथी हुई भावप्रवणता से संपृक्त पात्रों के अंतर्मन में झाँकती हैं और जीवन के अवगुंठनों को सहजता से खोलती हैं। कहीं-कहीं कथा संयोजन में क्लिष्ट होते हुए भी ये कहानियाँ अपनी भाषागत सहजता एवं मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति के कारण पाठक को कथ्य से आत्मसात् होने में सहायक सिद्ध होती हैं। वर्तमान समय की सच्चाइयों, बढ़ते तनावों, राजनीतिक लड़ाइयों, व्यावसायिक द्वेषों, नारी-शोषण, वृद्ध प्रताड़ना आदि विषयों के अतिरिक्त अनेक छोटी-छोटी परंतु समाज को व्यथित कर देनेवाली घटनाओं पर आधारित कहानियाँ समय का दर्पण बनकर उभरी हैं|
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